मेरे पैरों की उँगलियों को काट लिया गया
मैने कुछ नहीं कहा
मेरे दोनों पैर काट लिए गए
मैंने कुछ नहीं बोला
मेरे हृदय को काट दिया गया
मैंने कोई भी सुगबुगाहट नहीं की
मेरे दोनों कंधो को काट दिया गया
अभी भी मैंने उफ तक नहीं कहा
मेरे दोनों आँखों को निकाल लिया गया
मैंने सिसकियाँ तक नहीं भरीं
मेरी ज़बान को कई टुकड़ों में काट दिया गया
मैंने आवाज़ तक नहीं उठाई
मेरे लहू के क़तरे में सुअरी के बच्चे लतपत खेल रहे हैं ।
मैं और मेरी आवाज़ शहर से दूर किसी गुंबद पर निष्ठुर बैठे आपस में एक –दूसरे को निहार रहे हैं । शायद इस बार तो ज़रूर……।
राजकुमार
टोंक , 9/08/14