Archive for May, 2019

भीषण संघर्ष में

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रुख़

Posted: May 27, 2019 in Uncategorized

YUDH KABITAफोटो साभार – इंटरनेट 

पुरानी नाव 

(एक बात कथा)

nadi ki kahani

फोटो साभार: इंटरनेट 

पुरानी नाव कई वर्षों से औंधी, चीर निद्रा में सोयी हुई है। बाज़ार रोज़ की तरह ही आज भी अपने नियत रूप से चल रहा है। इस शहर के लोग या तो सुबह काम पर जाते हुए दिखते हैं या शाम को काम से वापस आते हुए। सभी एक गुमशुदा लबादे में अपने – अपने कामों में व्यस्त, ये एकदम नयी बात है। जिसकी जड़ें पश्चात आदिम ज़रूरतों से गुथी हुई हैं। जब हम रोज़ केवल आते-जाते हैं। तो मैंने सुना है कि पाणिनी की रस्सी सुस्त हो घिस कर एक निशान बनाती है। एक मार्ग बनाती है। जिस मार्ग से पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे प्रेत आना और जाना करते हैं। नदियों और नावों के रास्ते नहीं बल्कि घिसे हुए रस्सी मार्ग से।

 

ये प्रेत कॉलोनी, कस्बे, ऑफिस- दफ्तर में एक आदिम चित्कार करते हैं, जो हमारे कानों तक कभी पहुँच नहीं पाती। इस भीषण चित्कार ने बाहर सब सुन कर रखा है।वो पुरानी नाव भी इस चित्कार में अपनी शून्यता को तोड़ते –तोड़ते एक अद्भुत रसातल के चिरनिद्र में औधे मुह बिना सुगबुगाहट के सोयी हुई है। नदी के इंतज़ार में।

इस घर बाज़ार के नीचे काफी अरसे से एक नदी दबी पड़ी है और उस पुरानी नाव को इस नदी का लंबे समय से इंतज़ार है। जो इंतज़ार करते – करते नींद में लिन हो गयी है। परंतु नदी का नाव से एक गहरा संबंध है, नदी के सांस लेते ही, उसके जागते ही नाव भी दावानल की तरह उठ पड़ेगी, और नदी में सवार ये नाव समुद्र की दिशा में उफनती चल पड़ेगी। क्या तुमने नदियों को जागते हुए देखा है। क्या तुमने नाव को समुद्र में नहाते देखा है?

जहां कहीं भी कोई नाव चीर निद्रा में सोयी दिखे। उसकी घोर निद्रा तुम्हें कह देगी कि यहाँ कभी इंसान बसा करते थे। जहां औरतें अपनी नाव स्वयं खेती थीं, ये नाविक भर ही नहीं नदी श्रोत थी,ये निद्रा लिन नौकाएँ तुम्हें बता देंगी कि ये गंगा से भी पहले की बात है। और बस झट से तुम उसकी कानों में हौले से दो टूक बात कह देना कि तुम्हारी नींद को विराम देने नदी आ रही है। देखना नाव उछल पड़ेगी। ये नाव जब नदी में बसा करती थी। तब एक गाँव बसा करता था और ये नाव एक माँ की तरह गभीर जल में मुझे सँजोये रखा करती थी। क्या तुमने एक नाव को नदी से खेलते देखा है?

राजकुमार

8/5/2019,टोंक,23: 51