असीम विदाय

Posted: March 17, 2022 in Uncategorized

असीम विदाय

तुम अब एक चित्र हो गए हो

कविता, गीत और ध्रुपद नाटक हो गए हो

संस्मरण की रगो में बहती हुई गर्भ नदी हो गयी हो

जो आज तुम वर्तमान हो

दुनिया का वह एक भविष्य है

जिसमें तुम छिन्न – भिन्न और अनंत हो गयी हो

दार्शनिक, वैज्ञानिक जो बिन्दु खोजे

अब तुम वह बिन्दु हो गयी हो

ब्रह्मांड के सुदूर माने आती सुदूर सूक्षमांश हो गयी हो

एक शिशु के क्रंदन से परे असीम हो गयी हो

जहां कोई आवाज़

जहां कोई भाव

वहाँ सबसे परे हो गयी हो

बस धरित्रि पर विचरण करता तुम्हारा द्रवयांश है।

हर एक स्वाधीनता से परे

कभी न मिल सकने वाली दूरी में रमे

तुम बस कहीं तुमसे भी परे हो गयी हो।

अब एक पुरानी घड़ी में नया समय आरंभ हो रहा है।

इस घड़ी में कहानी का अंश हो गयी हो।

राजकुमार  

18 अक्टूबर, 2020

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