आत्म मुग्धता एक एसा चश्मा है। जिसमें बाहरी प्रकाश की किरणे आना बंद हो जाती हैं और आप कृष्ण विवर (ब्लैक होल) बन जाते है। जिसमें आप एक सोख्ते की तरह सब कुछ सोख जाते हैं और जोंक की तरह सब ऊर्जा चूसने लगते हैं।
अपः दिपो भवः की रोशनी से भीतर की रोशनी को बाहर और बाहर की जानलेवा विकिरणों को छान कर इसमें छिपे प्रकाश कोक कणों भीतर के द्वार से प्रवेश मार्ग से सकते हैं। जो अन्दर पहुंच कर एक ज्ञान और अनुभव की यादों से परे एक संसार बनाता है। जो आपको अनंत काल के लिए जीवन का एक स्रोत बनाता है।
कब पता चले की आपका चश्मा मुग्ध हो गया है या कब पता चले कि मैं अपना दीपक बना हूं। इसकी पहली कक्षा के लिए आपको यह समझना चाहिए होता है। इसके लिए उदाहरण स्वरूप इसे समझिए यह निदा फ़ाज़ली का शेर है,
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना।