युवा दिलों के युवा दिवस पर

Posted: March 17, 2022 in Uncategorized

युवा दिलों के युवा दिवस पर

यदा यदा हि…

कोई योगी लोकतन्त्र के नहीं धर्म की कुंठाओं के नेता हैं यानि के धर्मतंत्र के नेता हैं। मुझे कोई अफसोस नहीं की धर्म अभी भी सैकड़ों सदियों में भी सत्ता से जुदा नहीं हो पाया है और आगे के दिनों के इनके दीनानाथ ही मालिक हैं। 

विनोबा भावे की बात को कहते हुए मैं अपनी बात रखना चाहता हूँ। “आप स्वामी हैं आप सभी मिलकर एक स्वामी हैं । जो अपने सेवक का चयन करते हैं।”

यह बात लोकतन्त्र को मजबूती देती है। इसी तर्ज़ पर यह देखेंगे की जो जन सेवक है। वही जन स्वामी बन बैठे हैं। चाहे गली कूचों के नेता हों या कोई और अंतिम लाइन के नेता। क्या वो जनता सुलभ हैं। नहीं, वो जनता सुलभ कत्तई नहीं। सेवक को मालिक में हमने तब्दील किया है। हम लोकतन्त्र के नागरिक हैं। हम सेवक को सेवक का पाठ पढ़ा सकते हैं पर हमें एकजुट और एकमुठ होना होगा। युवाओं को सांप्रदायिक इतिहास को अंतिम प्रणाम कर अब इसकी जलांजलि देनी होगी और मानवीय चालीसा को अपनाना होगा। संविधान मानवीयता सिखाती है। धार्मिक लालसा आपको मानसिक और शारीरिक दोनों पक्षों से कमजोर करती हैं। हमें आदिम गुलाम, हमें नए दास बनाती है।

हमें कम में गुज़ारा करना और हरी के भजन गाना बचपन से सिखाया जाता है। कम है पर गम नहीं, यह भी सिखाया जाता है। यहाँ तक की नैतिक कथा सुनाई जाती है। रूखी सुखी खाई के ठंडा पानी पिउ, देख पराई चुपड़ी मत ललचाओ जीव। अगर समझ सकते हैं तो आप के पास खुला मैदान है समझने के लिये।  छोटी -छोटी बीमारी में हमारे घर -पड़ोस के लोग मारे जाते हैं। यह भी सोचो की पुलिस किसकी बात सुनती है। नेता नौकरी बनाने की बात करता है। पर मिलती किसको है। किसी कार्यालय में कोई कार्य होतो कोई अवतार चाहिए जो आपके काम करवा दे। पहले सभी जात पूछते हैं और फिर फ़ाइल आगे बढ़ती है। इनसे बचे तो डिग्री पुछते  हैं। अरे काका,  पढ़ने तो दो, सोचने समझने लायक तो बनाने का मौका दो। नहीं तो, चुनावी रैली में बंदर सेना की तरह भूखे प्यासे भागमभाग करो बस। लगता है देशत्वबोध से सराबोर भाषण दे कर आये है, धर्म का प्रचार कर रहे हैं। सब धर्म की दुहाई दे कर अधर्म करते हैं और इंसानियत का पलीता लगाते हैं। युधिष्ठिर हो या दुर्योधन हैं एक ही।

सम्पन्नता से जियो पृथ्वी हमें सब देती है पर ये सब किसका है? अगर अभी तक नहीं सोचा है। तो अब सोचो और ये भी सोचो की वहाँ लाठी लेकर, फांसी लेकर कौन बैठा है।

हमें धर्म पर वोट देने के बजाय अपने जरूरतों पर वोट देना  होगा। ज़रूरत माने केवल सड़क नही जो ब्रितानी हुकूमत से लेकर आज तक बन ही नही पा रही। ज़रूरत केवल रोटी नही उम्दा रोटी उम्दा काम उम्दा शिक्षा। क्योंकि जरूरतों के लिए हम कई देवालयों का दरवाज़ा खटखटाते हैं काठ की घंटियां बजाते हैं। न देव सुने न लोक सुना ,

बहुत ज़हन की लूट हुई। अब खुद के सुनने की पारी है और इंसान की संभावनाओं को वोट दो…धर्म के रूप में छिपे अधर्मियों को नहीं…। युवा हो धृतराष्ट्र नही, हुंकार हो द्रोणाचार्य नही। तुम कर्णधार हो बैल नही। तुम्ही हो युवा अवतारी,अब है हम सब की पारी।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भव- ति भारत ।

अभ्युत्थान- मधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्- ॥4-7॥

मानवीय परचम की अभिलाषा में…

राजकुमार

12/Jan/2021

Tonk

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s