Archive for April, 2022

वसुधा  

Posted: April 25, 2022 in Uncategorized
वसुधा

वसुधा  

अनल लेख में स्याह अग्नि हूँ

अपने उत्स से ही अग्नि कुंड में गुथी हुई हूँ।

निरंतर अग्नि युद्ध में संघर्षरत हूँ।

तुम्हारे दो टूक जीवन के लिए, तुम्हारे दो टूक सपनों के लिए।

अविराम काल से महाघटनाओं में बलित और फलित होती ही चली हूँ।

तुम सुन्न खड़े पड़े हो।

मेरे तन – मन को तुम ख्नरोंचते ही चले हो। आखिर निर्माण करना क्या चाह रहे हो।

जहां तुम मेरी क्षमताओं को बारंबार ललकार रहे हो।

तुम निर्लज्ज मेरे वक्ष पर खड़े,

मुझे खत्म करने की मीमांसा में जुटे हो।

आह! यह कैसा क्षण है

जब तारों में भस्म राख़ तैरेगी

तब मीमांसा पर मीमांसा के लिए बचा रह जाएगा

अनंत और असीम सन्नाटा

न समय होगा न कोई तीर

इसे सन्नाटा कह सको

न ही को कान होगा और न ही कोई ज़ुबान

मैं भस्म राख़ हो अनंत वेग में गतिमान रहूँगी

बस आज जो हूँ वो सदा -सदा के लिए न रहूँगी  

राजकुमार

9 मई – 2018

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गहन विलय 

Posted: April 8, 2022 in Uncategorized

गहन विलय

चिड़िया बैठी

नितांत अकेले

रही निहार दूर दिगंत

मन में पनप रहा गहन गगन

कभी देखती खुद को चिड़िया  

कभी पंख पसारे

आँके – बाँके खुद को देखे

बैठी चिड़िया अपनी सोच पे सोचे

मन में उभर गहन गगन को

क्या उड़ जाऊँ

क्या उड़ जाऊँ दूर दिगंत में

अविरल बहते कल के कल में

बैठी चिड़िया दूर अकेले

गहन गगन की गहराई में।

उड़ गयी चिड़िया

अनंत गगन में

रह गए उसके स्मृति चिन्ह

जो झर झर झर जाएंगे

शीतल जल में बह जाएंगे

बचा रहेगा गहन गगन

खड़ा रहेगा मुह बाए

फिर से इक चिड़िया आएगी

नापेगी

गहन गगन उड़ने को आतुर

चिड़िया बैठी रहेगी अकेली

पंख पसारे – आँके – बाँके

राजकुमार

8 अप्रैल, 2022

ये शहर तहरीर – है – मेरी

ये शहर रूह है मेरी

ये शहर रूह है मेरी

तहरीर है – मेरी

तस्वीर है मेरी  

पहचान है मेरी

तबीयत में घुली ज़ीस्त

है मेरी

है मेरी

नम्दे की वसीयत में सुकून है

सुकून है मेरी

नम्दे की वसीयत में सुकून है मेरी…

ख्वाबों और खिताबों की  

पहली सी …

ये पहली सी

कोशिश है

फ़िराक़ है मेरी

ये शहर नहीं

तहरीर है, मेरी

तस्वीर है,मेरी  

ये पल भर में जुनून है

जज़्बात है मेरी

माँ के हिदायतों में सिकी हुई रोटियों की ख्वाइश है, टोंक

मेरे बचपन में लिपटी हुई

कारनामों की नुमाइश है, टोंक

ये शहर नहीं रूह है मेरी  

ये शहर नहीं रूह है मेरी 

तमन्नाओं की कोशिश

रास्तों की रहनुमाई है, टोंक

मेरे दिल के कोने में बजते नगमों

का आखिर साज़ है, टोंक

ये शहर नहीं रूह है मेरी 

ये शहर नहीं रूह है मेरी 

जो भी चाहे मांग लो

जो भी चाहे रंग लो

उम्मीदों की  पतवार है, टोंक

मेरे जिस्त की सुर्ख़ रूह है, मेरी

रूह है मेरी 

तहरीर है, मेरी

तस्वीर है,मेरी  

हम, उम्मीदों की  हक़दार है, टोंक

जीने की राह में

ज़िंदगी की

ज़िंदगी की

चाह है, टोंक

मेरी बेचैनियों में तिनका सा

आह है, टोंक

ये टोंक है

ये टोंक है  

भीड़भाड़ में खाली सा

मिल जाने की खुशियों सा

जीने की उम्मीदों में

सज़दे करता

उम्मीदों की हक़दार है, टोंक

जीने की उम्मीदों में

मेरा टोंक है… 

मेरा टोंक है।

राजकुमार रजक

(जीने की लालसा से भरे, इस शहर के तपते जद्दोजहद ने मुझे जना नहीं है। कार्यक्षेत्र के विशाल द्वार के झरोखे से दोपहरी में गस्त मारते यहाँ के बचपन में मैंने खुद को खोजा है। जिसने मुझे बचपन से जोड़े रक्खा मेरे उस प्रयोगी बचपन से जो मेरे जीवन का सेतु बन पड़ा है। इस शहर को मेरे पुराने आज और किसी संभावित कल में आज में जो महसूस कर पा रहा हूँ, उसकी क्षणिक अभिव्यक्ति का दुःसाहस कर रहा हूँ।)