
अनल लेख में स्याह अग्नि हूँ
अपने उत्स से ही अग्नि कुंड में गुथी हुई हूँ।
निरंतर अग्नि युद्ध में संघर्षरत हूँ।
तुम्हारे दो टूक जीवन के लिए, तुम्हारे दो टूक सपनों के लिए।
अविराम काल से महाघटनाओं में बलित और फलित होती ही चली हूँ।
तुम सुन्न खड़े पड़े हो।
मेरे तन – मन को तुम ख्नरोंचते ही चले हो। आखिर निर्माण करना क्या चाह रहे हो।
जहां तुम मेरी क्षमताओं को बारंबार ललकार रहे हो।
तुम निर्लज्ज मेरे वक्ष पर खड़े,
मुझे खत्म करने की मीमांसा में जुटे हो।
आह! यह कैसा क्षण है
जब तारों में भस्म राख़ तैरेगी
तब मीमांसा पर मीमांसा के लिए बचा रह जाएगा
अनंत और असीम सन्नाटा
न समय होगा न कोई तीर
इसे सन्नाटा कह सको
न ही को कान होगा और न ही कोई ज़ुबान
मैं भस्म राख़ हो अनंत वेग में गतिमान रहूँगी
बस आज जो हूँ वो सदा -सदा के लिए न रहूँगी
राजकुमार
9 मई – 2018