हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।
एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल।
जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।
जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब।
मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार।।
तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ।
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार।।
और हो जो दूर या कुछ खफा हो हमसे मियां।
तो काफिर हो जिसे भाती है होली की बहार।।
नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम नजीर।
फिर बरस दिन के उपर है होली की बहार।।
नज़ीर अकबराबादी
वो दौर कभी और था वो दौर कभी आयेगा जुरुर जब होली हमारी और ईद हमारी थी और हम इनके इंतज़ार में वसंत के पत्ते गिना करते थे। इस कानाफूसी में लो आ गयी नाज़िर की आहट जो किवाड़ें खटखटा रहा है और तारीखों में आवाज़ दे रहा है तारीखों में…. आवाज़ ss … होली मुबारक़ हो नज़ीर होली मुबारक हो समीर।
राजकुमार
