कलम
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कौन सी सदी
वो अगराती हुई इच्छाओं की नाव चला रही है , मरणशील जीवन पर ।
न जाने कौन-कौन सी दिशा में इसका प्रवाह होगा ।
जबकि बूढ़ा समय अपना चरखा कातता ही चला है ।
समय ख़ुद भी अपनी इच्छाओं से डरता बारम्बार भाग रहा है –चरखा कात रहा है ।
उस दिन मैं तुमसे फिर मिलूँगा
तुम्हारे ही सुदूर वन में
जहाँ तुम्हारी इच्छाएँ
अपना जीभ निकाले प्यासे प्राणी की तरह हाँफ़ रही होंगी
और पानी न होगा ।
केवल तुम और तुम्हारी इच्छाएँ अपना सिर पटक रही होंगी ।
और मैं तुमसे पूछता रहूँगा की
ये कौन सी सदी है !
ये कौन सी सदी है !
ये कौन सी सदी है !
राजकुमार रजक