
ये शहर तहरीर – है – मेरी
ये शहर रूह है मेरी
ये शहर रूह है मेरी
तहरीर है – मेरी
तस्वीर है मेरी
पहचान है मेरी
तबीयत में घुली ज़ीस्त
है मेरी
है मेरी
नम्दे की वसीयत में सुकून है
सुकून है मेरी
नम्दे की वसीयत में सुकून है मेरी…
ख्वाबों और खिताबों की
पहली सी …
ये पहली सी
कोशिश है
फ़िराक़ है मेरी
ये शहर नहीं
तहरीर है, मेरी
तस्वीर है,मेरी
ये पल भर में जुनून है
जज़्बात है मेरी
माँ के हिदायतों में सिकी हुई रोटियों की ख्वाइश है, टोंक
मेरे बचपन में लिपटी हुई
कारनामों की नुमाइश है, टोंक
ये शहर नहीं रूह है मेरी
ये शहर नहीं रूह है मेरी
तमन्नाओं की कोशिश
रास्तों की रहनुमाई है, टोंक
मेरे दिल के कोने में बजते नगमों
का आखिर साज़ है, टोंक
ये शहर नहीं रूह है मेरी
ये शहर नहीं रूह है मेरी
जो भी चाहे मांग लो
जो भी चाहे रंग लो
उम्मीदों की पतवार है, टोंक
मेरे जिस्त की सुर्ख़ रूह है, मेरी
रूह है मेरी
तहरीर है, मेरी
तस्वीर है,मेरी
हम, उम्मीदों की हक़दार है, टोंक
जीने की राह में
ज़िंदगी की
ज़िंदगी की
चाह है, टोंक
मेरी बेचैनियों में तिनका सा
आह है, टोंक
ये टोंक है
ये टोंक है
भीड़भाड़ में खाली सा
मिल जाने की खुशियों सा
जीने की उम्मीदों में
सज़दे करता
उम्मीदों की हक़दार है, टोंक
जीने की उम्मीदों में
मेरा टोंक है…
मेरा टोंक है।
राजकुमार रजक
(जीने की लालसा से भरे, इस शहर के तपते जद्दोजहद ने मुझे जना नहीं है। कार्यक्षेत्र के विशाल द्वार के झरोखे से दोपहरी में गस्त मारते यहाँ के बचपन में मैंने खुद को खोजा है। जिसने मुझे बचपन से जोड़े रक्खा मेरे उस प्रयोगी बचपन से जो मेरे जीवन का सेतु बन पड़ा है। इस शहर को मेरे पुराने आज और किसी संभावित कल में आज में जो महसूस कर पा रहा हूँ, उसकी क्षणिक अभिव्यक्ति का दुःसाहस कर रहा हूँ।)