
गहन विलय
चिड़िया बैठी
नितांत अकेले
रही निहार दूर दिगंत
मन में पनप रहा गहन गगन
कभी देखती खुद को चिड़िया
कभी पंख पसारे
आँके – बाँके खुद को देखे
बैठी चिड़िया अपनी सोच पे सोचे
मन में उभर गहन गगन को
क्या उड़ जाऊँ
क्या उड़ जाऊँ दूर दिगंत में
अविरल बहते कल के कल में
बैठी चिड़िया दूर अकेले
गहन गगन की गहराई में।
उड़ गयी चिड़िया
अनंत गगन में
रह गए उसके स्मृति चिन्ह
जो झर झर झर जाएंगे
शीतल जल में बह जाएंगे
बचा रहेगा गहन गगन
खड़ा रहेगा मुह बाए
फिर से इक चिड़िया आएगी
नापेगी
गहन गगन उड़ने को आतुर
चिड़िया बैठी रहेगी अकेली
पंख पसारे – आँके – बाँके
राजकुमार
8 अप्रैल, 2022